यह मास महत्वपूर्ण पूजन-अर्चन, अभिषेक के बाद शाम को होने वाली भव्य उत्तर पूजा, महा आरती




रिपोर्ट-अमित उपाध्याय


गाजीपुर। पूर्वांचल के सिद्धपीठों में शुमार सिद्धपीठ हथियाराम तीर्थ स्थल का रूप ले चुका है। मां भगवती के 108 अवतारों में से एक माता वृद्धाम्बिका (बुढ़िया माई) एवं देवाधिदेव भगवान शिव के अनन्य उपासक 26वें पीठाधीश्वर महंत महामण्डलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति इन दिनों अपना 27वां चातुर्मास महायज्ञ सम्पादित कर रहे हैं। अषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से आरंभ यह चातुर्मास महायज्ञ भाद्र पद पूर्णिमा तक चलेगा। महायज्ञ में विद्वान ब्राह्मण प्रतिदिन षोडषप्रकार विधि से पार्थिव शिवलिंग बनाकर जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक कर रहे हैं। सुबह सात बजे से पूजन-अर्चन, अभिषेक के बाद शाम को होने वाली भव्य उत्तर पूजा, महा आरती व भोग-प्रसाद में देश के कोने-कोने से आये शिष्य श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं। आचार्य विनोद कुमार पांडेय, सत्यप्रकाश दूबे और सर्वेश चन्द्र पाण्डेय के नेतृत्व में एक साथ 21 ब्राह्मणों द्वारा किये जा रहे वैदिक मंत्रोच्चार की गूंज से समूचा अंचल गुंजायमान है। चातुर्मास के पहले दिन गुरुवार को स्वामी भवानीनन्दन यति ने हरिहरात्मक पूजा के उपरांत प्रवचन करते हुए इसकी महत्ता बताते हुए कहा कि व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के चार महीने को हिन्दू धर्म में चातुर्मास कहा गया है। ध्यान और साधना करने वालों के लिए यह मास महत्वपूर्ण होता है। इसमें एक ही स्थान पर रहकर ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। नदी-नाला पार करना तक वर्जित होता है। उन्होंने कहा कि इस दौरान भगवान विष्णु की आराधना करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। गुरुवार को उपवास और विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करना लाभकारी होता है। भगवान शिव को सर्मिपत चातुर्मास के पहले मास श्रावण में शिवोपासना करनी चाहिए। कहा कि भगवान शिव के ललाट पर चन्द्रमा और जटा से गंगा का प्रवाह इस बात का प्रतीक है कि हम अपने मन-मस्तिष्क को चन्द्रमा के समान शीतल रखें, तभी हमारे अंदर श्रेष्ठ विचारों की गंगा का प्रवाह होगा। शिव की उपासना को सर्वथा कल्याणकारी बताते हुए उन्होंने प्राचीन ऐतिहासिक सिद्धपीठ को संतों की धरती बताते हुए इस महातीर्थ पर चातुर्मास महायज्ञ आयोजन को अपना सौभाग्य बताया। इस महानुष्ठान में बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात समेत देश के कोने-कोने से शिष्य श्रद्धालु पहुंचकर दर्शन-पूजन कर पूण्य-लाभ के भागी बन रहे हैं। गौरतलब हो कि महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति महाराज सिद्धपीठ की संत परम्परा का निर्वहन करते हुए मठ समेत सोमनाथ, मलिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओमकारेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, विश्वेश्वर, त्रयम्बकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम, घुषमेश्वर द्वादश ज्योर्तिलिंगों, नेपाल स्थित पशुपतिनाथ व अन्य तीर्थ स्थानों पर इस महायज्ञ का अनुष्ठान कर चुके हैं। विगत कुछ वर्षों से सिद्धपीठ हथियाराम से ही चातुर्मास व्रत संचालित कर रहे हैं।

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