प्रियतम के सुख में ही प्रेमी का सुख सन्निहित होता है प्रेम केवल देना जानता है लेना तो सीखा ही नहीं-- फलाहारी बाबा

 



गाजीपुर जनपद के बाराचंवर ब्लाक मुख्यालय पर आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के दौरान श्री राम कथा के दौरान अयोध्या वासी महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 श्री शिवराम दास जी फलाहारी बाबा ने उपस्थित श्रोताओं से कहा की विज्ञान विकास के साथ-साथ अभिशाप है लेकिन अध्यात्म विकास के साथ-साथ अभिशाप नहीं आशीर्वाद है महात्माओं के क्रोध में भी कृपा छुपी होती है गौतम ऋषि ने अहिल्या को श्राप दिया



 परमात्मा का दर्शन हुआ और इंद्र को श्राप दिया तो आज तुलसीदास जी को बडाई करना पड़ा हजारों नेत्र से देवराज इंद्र दुल्लह रूप राम का दर्शन कर रहे हैं किसी ने पूछा तुलसीदास जी से इंद्र के बराबर आप शिकवा शिकायत करते थे आज बडाई क्योंकि ए तुलसीदास जी ने कहा कि आज के पहले अपने आंखों से काम का दर्शन करता था आज विवाह प्रसंग में इंद्र ने राम का दर्शन किया जो नेत्र काम का नहीं राम का दर्शन करते हैं वास्तव में वही बडाई के पात्र होते हैं वास्तव में जीवात्मा रुपी कन्या का विवाह मंत्र रुपी माता और गुरु रुपी पिता के द्वारा परमात्मा रुपी पति से होता है हमारी बुद्धि रूपी कन्या का पानी ग्रहण यदि ईश्वर के हाथों में हो जाए तो हमारा जीवन सफल हो जाता है परमात्मा जन्म के पहले भी था वोर्तमान में भी है 



और शरीर छोड़ने के बाद भविष्य में भी हमारे साथ रहेगा लाख प्रयास करो जगत को पाना संभव नहीं है और लाख प्रयास करो जगदीश को भुलना भी संभव नहीं है सीता की मुंह दिखाई का प्रसंग सुनाते हुए बाबा ने कहा कि रघुवंश में सबसे ज्यादा राम से कोई  प्रेम करता था तो उसका नाम कैकई  है कौशल्या के कोख से यदि राम ने जन्म लिया तो रामराज्य का जन्म कैकई के कोख से हुआ बनवास मांगने का आश्चर्य और दुख है पीड़ा कई कई नए जीवन प्रयंत सही है। बचपन में राम ने कैकई से वरदान मांगा था कि हे मां सबसे ज्यादा प्रेम आप ही मेरे से करती हैं जब मेरी राजगद्दी होने का समय आवे तो पिताजी से बनवास मांग लेना इस प्रसंग पर बाबा ने कहा कि प्रियतम के सुख में ही प्रेमी का सुख सन्निहित होता है प्रेम केवल देना जानता है लेना तो सीखा ही नहीं


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